Wednesday, June 20, 2012

देवर्षि, ब्रह्मर्षि, ऋषि-मुनि, साधु-संत, महात्माओं तथा भक्तों ने ज्ञान प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार की साधनाओं का मार्ग प्रशस्त किया है। हालांकि सभी साधनाओं का लक्ष्य ब्रह्म की प्राप्ति तथा अज्ञान की निवृत्ति ही है। हनुमत-साधना भी उन्हीं में से एक है। हनुमत-साधना से अनेक लौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। कहा भी गया है कि श्री हनुमानजी `अष्टसिद्धि-नवन िधि के दाता'हैं। `अणिमा महिमा, चैत्र गरिमा लघिमा तथा प्राप्ति: प्राकाम्य ईशित्वं, वशित्वं चाष्टासिद्धिय: ।। अर्थात् अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व तथा ईशित्व इन अष्ट सिद्धियों के स्वामी भक्त शिरोमणि हनुमानजी हैं। हनुमानजी ने सीतान्वेषण के समय अपनी इन शक्तियों का प्रयोग किया था। मारुति ने अपनी इन शक्तियों का प्रयोग कब-कब किया था, आइये इस पर एक नज़र डालें। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में इसका वर्णन किया है - १. अणिमा इस सिद्धि से योगी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकता है। हनुमानजी ने इस शक्ति का प्रयोग लंका प्रवेश के समय किया था। मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी ।। श्री हनुमानजी ने मच्छर के समान लघु से लघु रूप धारण कर नर रूपधारी श्री हरि अर्थात् श्रीरामचंद्रजी का स्मरण करके लंका में प्रवेश किया। २. लघिमा : योग से प्राप्त वह शक्ति जिससे योगी लघु, बहुत छोटा या हल्का बन सकता है। हनुमानजी ने इसका प्रयोग नागमाता सुरसा के समक्ष किया था। जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा। सत योजन तेहि आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा। जैसे-जैसे सुरसा मुख का विस्तार बढ़ाती थी, हनुमानजी उसका दूना रूप दिखलाते थे। जब उसने सौ योजन मुख किया, तब हनुमानजी ने लघु अथवा बहुत ही छोटा रूप धारण कर लिया। ३. महिमा हनुमानजी की महिमा का बखान ऋक्षराज जामवंत की वाणी से गोस्वामीजी के शब्दों में- कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ।। अर्थात् हे तात! जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो तुमसे न हो सके? यहां जामवंत ने हनुमानजी की महिमा का बखान किया, जिस पर हनुमानजी ने अपनी इस शक्ति का प्रयोग कर समुद्र पार किया। ४. गरिमा द्वापर युग में गंधमादनांचल में गुरुत्व अथवा भारीपन लिये हुए अपनी पूंछ फैलाकर स्वच्छंद पड़े गरिमामय बजरंग बली, बलगर्वित भीमसेन से बोले - `अत्यधिक वृद्धावस्था के कारण मैं स्वयं उठने में नितांत असमर्थ हूं, कृपया आप ही मेरी इस पूंछ को हटाकर आगे बढ़ जाइये।'महाबली भीमसेन पहले बायें हाथ से, फिर दायें हाथ से तदुपरांत दोनों हाथ से अपने संपूर्ण बल का उपयोग करने के उपरांत भी जब महाकपि की पूंछ को टस से मस न कर सके, तब उन्होंने महाकपि से क्षमा याचना की। (महाभारत) इस प्रसंग में महामारुति में गरिमा-सिद्धि का पूर्ण प्रस्फुटित रूप प्रत्यक्ष उपस्थित हो जाता है। ५. प्राप्ति प्राप्ति-सिद्धि प्रतिष्ठित होने पर साधक को वांछित फल प्राप्त होता है। सीताजी की खोज में अनेकानेक वानर-भालू चारों दिशाओं में गये, लेकिन उनमें श्री मारुति ही एक - अकेले सीतान्वेषक बने। ६. प्राकाम्य प्राकाम्य सिद्धि वह सिद्धि है, जिससे साधक की कामना पूर्ण होती है। श्री रामराज्याभिषेक समारोह के समय सर्वाधिक मूल्यवान मणियों को श्री रामभक्त हनुमान ने अपने दांतों से फटाफट फोड़ दिया। श्री रामभक्त ने भरे राजसभा में यह बात कही कि `जिस वस्तु में श्री राम नाम नहीं, वह वस्तु तो दो कौड़ी की भी नहीं। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राजसभासदों के मध्य आसीन एक रत्न पारखी के पूछने पर कि क्या आपके शरीर में श्रीराम नाम लिखा है? हनुमानजी ने अपने बज्र नख से अपनी छाती का चमड़ा उधेड़कर दिखा दिया। श्री राम-जानकी उनके हृदय में विराजित थे और उनके रोम-रोम में श्रीराम नाम अंकित था। ७. वशित्व वह सिद्धि जिससे साधक सबको अपने वश में कर लेता है। सर्व सुख-दु:ख हनुमानजी के वश में हैं। गोस्वामीजी कहते हैं - सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।। आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक ते कांपै।। भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै। नासै रोग हरै सब पीरा। जौ सुमिरै हनुमत बलबीरा।। ८. ईशित्व इस सिद्धि के प्रतिष्ठित हो जाने पर साधक में ऐश्वर्य तथा ईश्वरत्व भी स्वत: सिद्ध हो जाता है। अर्चना-आराधना के अनोखे हो देव तुम, सब जाति मानती है, ऐसे दयावान हो।' घर-घर पूजते हैं चित्र भी पवित्र मान, कोई ग्राम है नहीं, जहां न हनुमान हो।। हनुमानजी ग्यारहवें रुद्रावतार के रूप में जाने जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान शंकर के हनुमान के रूप में अवतार लेने का वर्णन करते हुए रामचरितमानस में लिखा है : जेहि शरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान। रुद्रदेह तजि नेह बस बानर भे हनुमान।। जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान। पुरुषा ते सेवक भए हर ते भे हनुमान।। इस प्रकार यह सिद्धि भी उनमें सिद्ध होती है। हनुमान जी आज सर्वत्र प्रत्येक गांव यहां तक कि प्रत्येक घर में ईश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। इस प्रकार श्री हनुमानजी के चरित्र में अष्टसिद्धि के प्रतिष्ठित स्वरूपों का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। आञ्जनेय श्री हनुमान के इस स्वरूप का ध्यान इस प्रकार है : आञ्जनेयमतिपाटला ननं काञ्चनाद्रिकमनी यविग्रहम्। पारिजाततरुमूलवा सिनं भावयामि पवनामनन्दनम्।।

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