Saturday, June 30, 2012

कल शाम अचानक भेंट हुई एक छोटे-से मजदूर से मैं चौंक पड़ज्ञ जब देखा मैंने उसको थोड़ी दूर से तन मैले कपड़ों से ढँका हुआ और हाथ में था एक थैला सारे दिन का थका हुआ और था बिल्कुल अकेला.. जब देखा मैंने उसको तो मैं पूछ ही बैठा उससे तुम कौन हो मेरे बच्चे और खड़े यहाँ हो कैसे? वो बोला- ”क़िस्मत का मारा हालातों से मजबूर हूँ सभी लोग कहते हैं मुझको मैं छोटा-सा मजदूर हूँ” मैं बोला- ”तुम बालक हो, तुम मजदूरी क्यों करते हो? हालात तुम्हारे ऐसे कैसे जो हालातों से लड़ते हो?” वो बोला- ”बाबूजी देखो मैं लगता हूँ तुमको बालक लेकिन तुम नहीं जानते मैं हूँ अपने घर का पालक.. बाप मुआ शराबी है घर में दस जन खाने वाले माँ बेचारी पेट से है सगे नहीं घराने वाले.. छोटे भाई-बहन मेरे भूख से हैं घर पर व्याकुल ऐसे में जाता हूँ कमाने गया मैं अपने बचपन को भूल” ये कहकर वो रो पड़ज्ञ और मैं चुप-चाप खड़ा था मेरे मन में कई प्रश्नों का एक सैलाब पड़ा था.. अब मैं उससे कुछ पूछूँ मेरे मन में साहस न था मेरे लिए तो अब वो बच्चा इक छोटा-सा बालक न था

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